Wednesday 10 October 2012

जवानी


गज़ल और कविता का भेद अभी समझ में नहीं आ पाया हू ,
फिर भी लगता है की आज जो लिखा है वो शायद गज़ल है ......

लबो पर उसके नई रवानी है ,
चौकिये मत यह मेरी कहानी है .

हर रोज गिर कर उठता है वो,
कमबक्थ खून में उसके पहलवानी है

मज़ार पर सर झुक जाता है,
उसमे दफ़न एक नायाब कहानी है.

जख्म शरमाते है रिसने से
जनाब इसी का नाम तो जवानी है.--रतनजीत सिंह

No comments:

Post a Comment