Wednesday 10 October 2012

जवानी


गज़ल और कविता का भेद अभी समझ में नहीं आ पाया हू ,
फिर भी लगता है की आज जो लिखा है वो शायद गज़ल है ......

लबो पर उसके नई रवानी है ,
चौकिये मत यह मेरी कहानी है .

हर रोज गिर कर उठता है वो,
कमबक्थ खून में उसके पहलवानी है

मज़ार पर सर झुक जाता है,
उसमे दफ़न एक नायाब कहानी है.

जख्म शरमाते है रिसने से
जनाब इसी का नाम तो जवानी है.--रतनजीत सिंह

कुछ लिखा जाए !

आज सोचा क्या लिखे ..क्या लिखे आखिर !!!!
देखते है ,क्या लिखा जा सकता है ?


कुछ लिखा जाए !
पढ़ने या पढाने के लिए नहीं ,
जमाने के लिए लिखा जाए .
बहुत हो चुका सूरज को सूर्य
और दिनकर कहने का राग ,
करीने के लिए लिखा जाए .


कुछ लिखा जाए !
दिवार उठाने के लिए नहीं ,

गिराने के लिए लिखा जाए.
मौत की बहस नहीं थमेगी
दवात में अश्क भरकर रोज,
जिंदगी के लिए लिखा जाए .

कुछ लिखा जाए !
परदे डालने के लिए नहीं ,
उठाने के लिए लिखा जाए.

--रतनजीत सिंह —


गुलिस्ता

गुलिस्ता बर्बाद हुआ जा रहा है
मेरा मुल्क अब कहा जा रहा है

आस्तीने ऊपर चडा कर
हर कोई भगा जा रहा है

मुफलिसी का कैसा दौर है
पानी भी हाथ से जा रहा है

वो इस नज़र से पत्ते बाँट रहे है
इक्का दुग्गी से काटा जा रहा है

कोयला भला खाने की चीज़ है
की केरोसीन भी पिया जा रहा है

तुम बैठ कर गजले लिखो रतन
तुम्हारा गुनाह भी लिखा जा रहा है

Monday 3 September 2012

मै नया कवि हु

मै नया कवि हूँ l
पुराने किलो पर नए मकान खोजता हूँ
शेर की मांद के आगे मचान खोजता हूँ.

मै नया कवि हूँ l
ऊपर की और बढते शहरों में शमशान खोजता हूँ
शमशानो में मानवता के छुपे पैगाम खोजता हूँ.

मै नया कवि हूँ l
तुम्हारी हर बात के पीछे ठोस प्रमाण खोजता हूँ
गरीबी के जलते घावों के नीचे लोबान खोजता हूँ.

मै नया कवि हूँ l
झूठे चेहरों के पीछे एक अदद जबान खोजता हूँ
हर आम शक्स के भीतर थोडा ईमान खोजता हूँ.